Question 1:
लेखक को ओस की बूँद कहाँ मिली?
Answer:
एक बार जब लेखक जा रहा था, तब बेर के वृक्ष से एक बूँद आकर लेखक की हथेली पर गिरी। यह बूँद मोती के समान चमक रही थी। बूँद को देखकर लेखक के आश्चर्य का ठिकाना न रहा।
Question 2:
ओस की बूँद क्रोध और घृणा से क्यों काँप उठी?
Answer:
ओस की बूँद क्रोध और घृणा से इसलिए काँप उठी, क्योंकि पेड़ की जड़ें तथा जड़ों पर उगने वाले रोएँ बड़े ही निर्दयी होते हैं।
ये असंख्य बूँदों एवं जल-कणों को बलपूर्वक पृथ्वी से खींच लेते हैं। कुछ जल-कणों एवं बूँदों को तो ये एकदम से नष्ट कर देते हैं और अधिकांश का सबकुछ छीनकर उन्हें बाहर निकाल देते हैं।
Question 3:
हाइड्रोजन और ऑक्सीजन को पानी ने अपना पूर्वज / पुरखा क्यों कहा?
Answer:
सहस्रों वर्ष पहले हाइड्रोजन और ऑक्सीजन नामक दो गैसें सूर्यमंडल में लपटों के रूप में विद्यमान थीं। जब हमारे ब्रह्मांड में उथल-पुथल हुई, तो अनेक ग्रह और उपग्रह बने। भीषण आकर्षण शक्ति के कारण सूर्य का एक भाग अज्ञात आकर्षण शक्ति की ओर बढ़ने लगा। सूर्य का यह भाग इतना भारी खिंचाव सँभाल नहीं पाया और टूटकर कई टुकड़ों में बँट गया। उन्हीं में से एक टुकड़ा हमारी पृथ्वी है। यह प्रारंभ में एक आग का गोला थी। धीरे-धीरे पृथ्वी ठंडी होती चली गई। अरबों वर्ष पहले हाइड्रोजन और ऑक्सीजन की रासायनिक क्रिया के फलस्वरूप पानी का जन्म हुआ था। इसलिए हाइड्रोजन और ऑक्सीजन को पानी ने अपना पूर्वज / पुरखा कहा है।
Question 4:
'पानी की कहानी' के आधार पर पानी के जन्म और जीवन-यात्रा का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
Answer:
पानी का जन्म हाइड्रोजन और ऑक्सीजन नामक दो गैसों के रासायनिक मेल से हुआ। उन दिनों पानी भाप रूप में होता था तथा पृथ्वी के चारों ओर विद्यमान था। इसके बाद पानी के रूप और गुण में परिवर्तन हुआ तथा भाप से परिवर्तित होकर यह बर्फ़ के ठोस रूप में आ गया। भाप रूप में पानी अत्यंत विस्तृत था, लेकिन ठोस रूप में आने पर यह सीमित एवं छोटा हो गया। पहले की अपेक्षा अब यह उसका सतरहवाँ भाग शेष रह गया था। इसके पश्चात् अचानक सूर्यताप आया और उसने ठोस बर्फ रूप वाले पानी की सुंदरता बदल दी। सारी बर्फ़ पिघलकर पानी बन गई। कुछ पानी नदियों में मिल गया; कुछ पानी समुद्र में जाकर मिल गया और कुछ जल-कण आँधी के साथ उड़कर वायुमंडल में पहुँच गए।
Question 5:
कहानी के अंत और आरंभ के हिस्से को स्वयं पढ़कर देखिए और बताइए कि ओस की बूँद लेखक को आपबीती सुनाते हुए किसकी प्रतीक्षा कर रही थी?
Answer:
कहानी के अंत और आरंभ के हिस्से को पढ़कर पता चलता है कि ओस की बूँद लेखक को आपबीती सुनाते हुए सूर्योदय की प्रतीक्षा कर रही थी।
Question 6:
जलचक्र के विषय में जानकारी प्राप्त कीजिए और पानी की कहानी से तुलना करके देखिए कि लेखक ने पानी की कहानी में कौन-कौन सी बातें विस्तार से बताई हैं?
Answer:
जलचक्र वह प्रक्रिया है, जिसमें जल वर्षा रूप में पृथ्वी पर आता है फिर वह बहकर समुद्र में मिलता है और फिर वाष्प बनकर जल पुन: वायुमंडल में पहुँच जाता है। चह चक्र निरंतर चलता रहता है। पाठ में जल के तीनों रूपों—गैस, द्रव्य व ठोस की चर्चा की गई है। इसके साथ ही जलचक्र की प्रक्रिया का भी उल्लेख किया गया है। इसके अंतर्गत लेखक ने निम्नलिखित बातें विस्तार से बताई हैं—
1. सूर्य के एक भाग के टूटने के बाद पृथ्वी व अथ ग्रह बने। पृथ्वी के ठंडे होने के बाद ऑक्सीजन व हाइड्रोजन की रासायनिक क्रिया से पानी बना।
2. पानी पहले भाप रूप में था, लेकिन तापमान कम होने पर वह ठोस बर्फ़ में परिवर्तित हो गया।
3. इसके बाद एक दिन सूर्य के ताप के बर्फ़ पिघली और पानी बनकर समुद्र में जा मिली।
4. समुद्र से होकर पानी धरती के गर्भ में पहुँचा और एक स्थान से निकलकर नदी की धारा के साथ बहने लगा। तदंतर पेड़ों द्वारा उसे खींच लिया गया।
5. पानी की बूँदें पेड़ों के पत्तों से ओस की बूँदें बनकर बाहर निकलीं और सूर्य की गरमी से लुप्त होकर पुन: वाष्प बन गईं।
Question 7:
समुद्र के तट पर बसे नगरों में अधिक ठंड और अधिक गरमी क्यों नहीं पड़ती?
Answer:
पानी के कारण समुद्र के किनारे या समीप के वातावरण में आर्द्रता अधिक होती है, जिसके कारण न तो तापमान बढ़ता है और न ही कम होता है। इसलिए समुद्र के समीप के वातावरण में न अधिक गरमी पड़ती है और न ही अधिक सर्दी पड़ती है।
Question 8:
पेड़ के भीतर फव्वारा नहीं होता, तब पेड़ की जड़ों से पत्ते तक पानी कैसे पहुँचता है? इस क्रिया को वनस्पति शास्त्र में क्या कहते हैं? क्या इस क्रिया को जानने के लिए कोई आसान प्रयोग है? जानकारी प्राप्त कीजिए।
Answer:
पेड़ों की जड़ों पर उगे रोएँ ज़मीन से पानी खींचने का काम करते हैं। इसके बाद पेड़ की जड़ों और तनों में उपस्थित 'जाइलम' और 'फ्लोएम' नामक कोशिकाएँ इस पानी को पत्तों तक पहुँचाने का काम करती हैं। इस क्रिया को 'संवहन' कहते हैं। इस प्रक्रिया को जमने की विधि इस प्रकार है :
काँच का एक बीकर लें और उसमें नीले, लाल या बैंगनी रंग का पानी डालें। अब सफेद फूलों वाला एक पौधा बीकर में रखें। थोड़ी देर बाद आप देखेंगे कि संवहन प्रक्रिया के कारण रंगयुक्त पानी फूलों की कोशिकाओं में दिखाई देने लगेगा।
Question 9:
अन्य पदार्थों के समान जल की भी तीन अवस्थाएँ होती हैं। अन्य पदार्थों से जल की इन अवस्थाओं में एक विशेष अंतर यह होता है कि जल की तरल अवस्था की तुलना में ठोस अवस्था (बर्फ़) हल्की होती है। इसका कारण ज्ञात कीजिए।
Answer:
जल की ठोस अवस्था तरल से अधिक हल्की होती है। इसका कारण बर्फ़ का घनत्व है, जो पानी की तुलना में कम होता है। इसी कारण से बर्फ़ पानी में तैरती है।
Question 10:
पाठ के साथ केवल पढ़ने के लिए दी गई पठन सामग्री 'हम पृथ्वी की संतान!' का सहयोग लेकर पर्यावरण संकट पर एक लेख लिखें।
Answer:
पर्यावरण बचाओ अभियान
मानव ने जब प्रकृति की गोद में आँखें खोलीं, तो उसने अपने चारों ओर उज्ज्वल प्रकाश, निर्मल जल और स्वच्छ वायु का वरदान पाया। वन प्रदेशों की मनोहर हरियाली में उसने जीवन के मधुरतम सपने देखे। उसका पेड़-पौधों से, फल, फूलों से, चहकते पक्षियों से, प्रभात और संध्या बेला से नित्य का संबंध था। प्रकृति के आँगन में खेलते हुए उसने पुष्ट, नीरोग शरीर और उत्साह-उल्लास से लबालब तनावहीन मानस प्राप्त किया। किंतु धीरे-धीरे उसके मन में प्रकृति पर शासन करने की लालसा जागी। उसने प्रकृति को माँ के स्थान से हटाकर दासी के स्थान पर धकेलना चाहा। इसको नाम दिया गया—'वैज्ञानिक-प्रगति।'
पर्यावरण संकट के प्रकार—आज सृष्टि का कोई पदार्थ, कोई कोना प्रदूषण के प्रहार से नहीं बचा है। प्रदूषण मानवता के अस्तित्व पर एक नंगी तलवार की भाँति लटक रहा है। प्रदूषण के मुख्य स्वरूप निम्नलिखित हैं—
1. जल प्रदूषण—जल मानव-जीवन के लिए परम आवश्यक पदार्थ है। जल के परंपरागत स्रोत हैं—कुएँ, तालाब, नदी तथा वर्षा का जल। प्रदूषण ने इन सभी स्रोतों को दूषित कर दिया है। औद्योगिक प्रगति के साथ-साथ हानिकारक कचरा और रसायन बड़ी मात्रा में इन जल-स्रोतों में मिल रहे हैं। महानगरों के समीप से बहने वाली नदियों की दशा तो अकथनीय है। गंगा, यमुना, गोमती आदि सभी नदियों की पवित्रता प्रदूषण की भेंट चढ़ गई है।
2. वायु प्रदूषण—वायु भी जल जितना ही आवश्यक पदार्थ है। श्वास-प्रश्वास के साथ वायु निरंतर शरीर में जाती है। आज शुद्ध वायु का मिलना कठिन हो गया है। वाहनों, कारखानों और सड़ते हुए औद्योगिक कचरे ने वायु में भी ज़हर भर दिया है। घातक गैसों के रिसाव भी यदा-कदा प्रलय मचाते रहते हैं।
3. खाद्य प्रदूषण—प्रदूषित जल और वायु के बीच पनपने वाली वनस्पति या उसका सेवन करने वाले पशु-पक्षी भी आज दूषित हो रहे हैं। चाहे शाकाहारी हो या मांसाहारी—कोई भी भोजन के प्रदूषण से नहीं बच सकता।
4. ध्वनि प्रदूषण—आज मनुष्य को ध्वनि के प्रदूषण को भी भोगना पड़ रहा है, कर्कश और तेज़—ध्वनियाँ मनुष्य के मानसिक संतुलन को बिगाड़कर और उसकी कार्यक्षमता को कुप्रभावित करती हैं। वैज्ञानिक और औद्योगिक प्रगति के फलस्वरूप आज मनुष्य कर्कश, असहनीय और श्रवणशक्ति को क्षीण करने वाली ध्वनियों के समुद्र में रहने को मजबूर है। आकाश में वायुयानों की कानफोड़ ध्वनियाँ, धरती पर वाहनों, यंत्रों और संगीत का मुफ्त दान करने वाले ध्वनि विस्तारकों का शोर आदि सब मिलकर मनुष्य को बहरा बना देने पर तुले हुए हैं।
पर्यावरण संकट बढ़ने के कारण—प्राय: हर प्रकार के प्रदूषण की वृद्धि के लिए हमारी औद्योगिक और वैज्ञानिक प्रगति तथा मनुष्य का अविवेकपूर्ण आचरण ही जि़म्मेदार है। चर्म उद्योग, कागज़ उद्योग, छपाई उद्योग, वस्त्र उद्योग और नाना प्रकार के रासायनिक उद्योगों का कचरा और प्रदूषित जल लाखों लीटर की मात्रा में प्रतिदिन नदियों में बहाया जाता है या ज़मीन पर फैलाया जा रहा है। यह एक गंभीर समस्या है। इसलिए यह सभी का कर्त्तव्य बनता है कि पर्यावरण को स्वच्छ बनाने के लिए एकजुट प्रयास किए जाएँ। प्रदूषण पर नियंत्रण ही प्रदूषण को कम करने का सटीक उपाया है।