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“Atamatran” poem is written by Rabindranath Tagore and translated by Acharya Hari Prasar Dwivedi. Through this poem, the poet is trying to express the suffering of a human which makes them stronger. He prays to God to not make his life easier but to provide him with the strength and confidence. The poet is not affected even if there is something bad happening in his life as he believes that there joy and sadness are not the only things that should matter. He just requires the strength to handle the sadness.
Question 1:
कवि किससे और क्या प्रार्थना कर रहा है?
Answer:
कवि ईश्वर से प्रार्थना कर रहा है। वह प्रार्थना करता है कि ईश्वर उसे आत्मिक बल प्रदान करे। वह भले ही उसकी सहायता न करे, किंतु उसके आत्मविश्वास को बनाए रखे। कवि ईश्वर से अपने आप को स्वावलंबी बनाए रखने की प्रार्थना कर रहा है।
Question 2:
'विपदाओं से मुझे बचाओ, यह मेरी प्रार्थना नहीं'—कवि इस पंक्ति के द्वारा क्या कहना चाहता है?
Answer:
कवि इस पंक्ति के माध्यम से कहना चाहता है कि वह ईश्वर से अपने आपको मुसीबतों से बचाने की प्रार्थना नहीं करना चाहता। वह जीवन में प्रत्येक मुसीबत से स्वयं लड़ना चाहता है। वह संकट की घड़ी में संघर्ष करना चाहता है। वह पूर्णत: ईश्वर पर आश्रित न होकर स्वावलंबी बनना चाहता है। कवि कहता है कि वह ईश्वर से केवल आत्मिक बल चाहता है, ताकि वह अपने सभी कार्य स्वयं कर सके।
Question 3:
कवि सहायक के न मिलने पर क्या प्रार्थना करता है?
अथवा
विपत्ति आने पर कवि ईश्वर से क्या प्रार्थना करता है?
Answer:
कवि कहता है कि दुख की घड़ी में यदि कोई सहायक नहीं मिलता, तो भी उसे इसका कोई गम नहीं है। वह ईश्वर से केवल इतनी प्रार्थना करता है कि ऐसे समय में भी वह अपना आत्मविश्वास और पराक्रम न खोए। वह चाहता है कि ईश्वर उसे इतनी शक्ति दे कि दुख में भी उसका मन हार न माने। वह उन दुखों से लड़ने की शक्ति पाने की प्रार्थना करता है।
Question 4:
अंत में कवि क्या अनुनय करता है?
Answer:
कविता के अंत में कवि ईश्वर से प्रार्थना करता है कि वे उसे दुखों को सहन करने की शक्ति प्रदान करे। वह सुख और दुख में एक जैसा अनुभव करे। जब उसके जीवन में सुख हो, तब भी वह विनम्र होकर ईश्वर को अपने आस-पास अनुभव करे तथा जब वह दुखों में घिर जाए, तब भी ईश्वर पर उसका विश्वास न डगमगाए। कवि प्रार्थना करता है कि ईश्वर उसे आत्मिक बल प्रदान करने के लिए सदैव उसके साथ रहे। वह कभी अपने पथ से विचलित न हो।
Question 5:
'आत्मत्राण' शीर्षक की सार्थकता कविता के संदर्भ में स्पष्ट कीजिए।
अथवा
'आत्मत्राण' शीर्षक का अर्थ बताते हुए उसका सार्थकता कविता के संदर्भ में स्पष्ट कीजिए।
Answer:
कवि ने 'आत्मत्राण' कविता में ईश्वर से आत्मिक एवं नैतिक बल प्रदान करने की प्रार्थना की है। 'आत्म' से तात्पर्य अपना तथा 'त्राणÓ का अर्थ रक्षा अथवा बचाव है। कवि ईश्वर से प्रार्थना करता है कि उसे वह शक्ति प्रदान करे, जिससे वह अपने आप अपनी रक्षा कर सके। वह जीवन के सभी संघर्षों से स्वयं जूझना चाहता है। वह ईश्वर से सहायता नहीं चाहता अपितु वह अपनी सहायता स्वयं करना चाहता है। इसी आधार पर कवि ने इस कविता का नामकरण 'आत्मत्राण' किया है। यह नामकरण कविता के मूल भाव को व्यक्त करने में पूर्णत: सक्षम है। अत: यह शीर्षक एकदम उचित, सार्थक एवं स्टीक है।
Question 6:
अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए आप प्रार्थना के अतिरिक्त और क्या-क्या प्रयास करते हैं? लिखिए।
Answer:
प्राय: अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए ईश्वर से प्रार्थना की जाती है लेकिन हम अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए प्रार्थना के साथ-साथ मेहनत भी करते हैं। केवल प्रार्थना करने से सफलता नहीं मिलती। प्रार्थना के साथ-साथ परिश्रम करने से ही सफलता मिलती है। इसके अतिरिक्त अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए हम दूसरों से प्रेरणा लेते हैं। हम अपने-अपने क्षेत्र में उन्नति करते हुए अनेक लोगों से प्रेरणा लेकर अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते हैं। इस प्रकार लक्ष्य-प्राप्ति पर हमारी इच्छाओं की पूर्ति होती है। ईश्वर की प्रार्थना के साथ-साथ हम स्वयं पर आत्मविश्वास रखकर ही अपनी इच्छाओं की पूर्ति कर सकते हैं।
Question 7:
क्या कवि की यह प्रार्थना आपको अन्य प्रार्थना गीतों से अलग लगती है? यदि हाँ, तो कैसे?
Answer:
कवि की यह प्रार्थना अन्य प्रार्थना गीतों से अलग है। अन्य प्रार्थना गीतों में ईश्वर से अपना कल्याण करने की प्रार्थना की जाती है, किंतु इस प्रार्थना गीत में कवि स्वयं संघर्ष करके मुसीबतों का मुकाबला करना चाहता है। अन्य प्रार्थना गीतों में स्वयं को दीन-हीन प्रदर्शित करके ईश्वर से उद्धार करने की प्रार्थना की जाती है, लेकिन इस प्रार्थना में कवि ने ईश्वर से कुछ न करने को कहा है। वह केवल इतना चाहता है कि ईश्वर उसका आत्मिक और नैतिक बल बनाए रखे अन्य प्रार्थनाओं के विपरीत इस प्रार्थना में कवि ने अपना सारा भार ईश्वर पर नहीं डाला। कवि अपनी सहायता स्वयं करना चाहता है। वह केवल इतना चाहता है कि ईश्वर उसके आस-पास रहे और उसे उसकी मात्र अनुभूति होती रहे। इस प्रार्थना की यही विशेषताएँ इसे अन्य प्रार्थना गीतों से अलग करती है।
Question 8:
निम्न अंश का भाव स्पष्ट कीजिए—
नत शिर होकर सुख के दिन में, तव मुख पहचानूँ छिन-छिन में।
Answer:
इन पंक्तियों में कवि कहता है कि सुख के दिनों में भी उसे किसी तरह का अभिमान न हो! वह विनम्र रहे तथा ईश्वर में उसकी आस्था पहले जैसी ही बनी रहे। कवि कहना चाहता है कि वह सुख के दिनों में भी अपने सिर को झुकाकर अत्यंत विनम्र भाव से ईश्वर की छवि को पल-पल निहारता रहे। ईश्वर में उसका विश्वास ज़रा भी कम न हो। वह ईश्वर से प्रार्थना करता है कि वह सुख के नशे में डूबकर उन्हें कभी न भूले।
Question 9:
निम्न अंश का भाव स्पष्ट कीजिए—
हानि उठानी पड़े जगत्ï में लाभ अगर वंचना रही, तो भी मन में ना मानूँ क्षय।
Answer:
इन पंक्तियों में कवि ने ईश्वर से प्रार्थना की है कि कठिन परिस्थितियों में भी उसका मन हार न माने। कवि कहना चाहता है कि उसे संसार में पग-पग पर हानि उठाना स्वीकार है और यदि उसे लाभ के स्थान पर धोखा मिले, तो भी वह नहीं घबराएगा। वह केवल इतना चाहता है कि ऐसी संकट की घड़ी में भी उसका मन न हारे। यदि उसका मन हार गया तो फिर उसके जीवन में कुछ भी शेष नहीं रहेगा। अत: कवि ने यहाँ ईश्वर से मानसिक बल देने की प्रार्थना की है।
Question 10:
निम्न अंश का भाव स्पष्ट कीजिए—
तरने की हो शक्ति अनामय, मेरा भार अगर लघु करके न दो सांत्वना नहीं सही।
Answer:
इन पंक्तियों में कवि कहना चाहता है कि ईश्वर उसे इतनी मानसिक दृढ़ता दे कि वह अपने दुखों को सहन कर सके। कवि ईश्वर से प्रार्थना कर रहा है कि यदि वह उसके दुखों के भार को कम करके उसे दिलासा न दे, तो भी उसे दुख नहीं है। वह केवल इतना चाहता है कि ईश्वर उसे मानसिक और शारीरिक रूप से इतना दृढ़ कर दे कि वह संसाररूपी सागर को सरलता से पार कर जाए। कवि ईश्वर से सांत्वना के स्थान पर स्वयं को संघर्ष करने की शक्ति प्रदान करने की बात कहता है।