NCERT Solutions for Class 10 Hindi Chapter 5 - पर्वत प्रदेश में पावस

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The poem “Parvat Pradesh Mein Pavash” is written by Sumitranandan Pant. The poet writes this poem in a way that it feels like the entire nature has come alive. The poem describes the changing of nature during the rainy season. At times, it is raining and then the next moment, the sun is shining bright in the sky. The flowers are blooming in the mountains making them look like they have eyes. There is also a waterfall nearby making a musical sound which is radiating happiness. The trees are growing so tall that they appear as if they are trying to touch the peaceful sky. After the rain, there is a dense mist that is covering the things in the surrounding with its smoke. The pond also looks like it has caught fire. The poet says that the weather feels like Indra himself is carrying his cloud-like plane and roaming all over the sky.

Question 1:

पावस ऋतु में प्रकृति में कौन-कौन से परिवर्तन आते हैं? कविता के आधार पर स्पष्ट कीजिए।

अथवा

पर्वतीय प्रदेश में वर्षा का सौंदर्य।

Answer:

पावस ऋतु में प्रकृति में निरंतर परिवर्तन होता है। कभी धूप निकल आती है, तो कभी घने काले बादल छा जाते हैं। धूप के निकलने पर आस-पास के पर्वत और उन पर खिले हुए फूल बहुत सुंदर दिखाई देते हैं। घने बादलों के आ जाने पर सबकुछ बादलों की ओट में छिप जाता है। चारों ओर घना अंधकार छा जाता है। ऊँचे-ऊँचे वृक्ष धुले हुए से प्रतीत होते हैं। पर्वतों से निकलने वाले झरने मधुर ध्वनि करते हुए बहने लगते हैं। आकाश में इधर-उधर घूमते हुए बादल अत्यंत आकर्षक लगते हैं।

Question 2:

'मेखलाकार' शब्द का क्या अर्थ है? कवि ने इस शब्द का प्रयोग यहाँ क्यों किया है?

Answer:

मेखलाकार का शाब्दिक अर्थ है—'शृंखलाकार, मंडलाकार, एक से एक जुड़े हुए'। कवि ने पर्वत की सुंदरता प्रकट करने के लिए इस शब्द का प्रयोग किया है। पर्वतों की शृंखलाएँ एक-दूसरे से जुड़कर दूर तक फैली हुई हैं और इस व्यापकता से उनकी सुंदरता प्रकट हो रही है।

Question 3:

‘पर्वत प्रदेश में पावस’ कविता के आधार पर पर्वत के रूप-स्वरूप का चित्रण कीजिए।

Answer:

पर्वत शृंखलाबद्ध विशालकाय अपने ढालदार आकार के कारण दूर-दूर तक फैला हुआ है। उस पर अनेक रंग-बिरंगे फूल खिले हुए हैं, जो ऐसे लगते हैं मानो शृंखलाबद्ध अपार पर्वत सहस्रो प्रण्यरूपी नेत्रें से तलहटी में बने हुए सरोवर रूपी दर्पण में अपना रूप निहार रहा हो।

Question 4:

'सहस्र दृग सुमन' से क्या तात्पर्य है? कवि ने इस पद का प्रयोग किसके लिए किया होगा?

Answer:

'सहस्र दृग सुमन' से तात्पर्य हज़ारों पुष्परूपी आँखों से है। कवि ने इस पद का प्रयोग पर्वत के लिए किया है। कवि कहता है कि पर्वत पर फूल खिले हुए थे और पर्वत के नीचे विशाल सरोवर था। उन्हें देखकर ऐसा लगता है, मानो पर्वत सहस्रों पुष्परूपी नेत्रों से अपनी शोभा को तालाबरूपी दर्पण में निहार रहा हो।

Question 5:

कवि ने तालाब की समानता किसके साथ दिखाई है और क्यों?

Answer:

कवि ने तालाब की समानता दर्पण के साथ दिखाई है। कवि ने यह समानता इसलिए दिखाई है, क्योंकि जिस प्रकार दर्पण में प्रतिबिंब को साफ-साफ देखा जा सकता है, उसी प्रकार तालाब के जल में भी पर्वत और उस पर लगे फूलों का प्रतिबिंब साफ दिखाई दे रहा था। यहाँ कवि द्वारा तालाब की समानता दर्पण से करना अत्यंत उपयुक्त एवं सटीक है।

Question 6:

पर्वत के हृदय से उठकर ऊँचे-ऊँचे वृक्ष आकाश की ओर क्यों देख रहे थे और वे किस बात को प्रतिबिंबित करते हैं?

Answer:

पर्वत की चोटियों पर ऊँचे-ऊँचे पेड़ थे, जो टकटकी लगाए आकाश की ओर देखते हुए प्रतीत हो रहे थे। ऐसा लगता था, मानो वे और ऊँचा उठना चाहते थे। वे पेड़ ऐसे व्यक्ति को प्रतिबिंबित कर रहे थे, जो ऊँचा उठने की आकांक्षा से ओत-प्रोत हो और चिंतामुक्त होकर स्थिर भाव से अपने लक्ष्य को पाने की चाह में निरंतर बढ़ रहा हो।

Question 7:

शाल के वृक्ष भयभीत होकर धरती में क्यों धँस गए?

Answer:

कवि ने शाल के वृक्षों के भयभीत होकर धरती में धँसने की कल्पना की है। कवि के अनुसार वर्षा इतनी तेज़ और मूसलाधार थी कि ऐसा लगता था, मानो आकाश टूटकर धरती पर गिर गया हो। कोहरे के फैलने से ऐसा प्रतीत होता था, मानो सरोवर जल गया हो और उसमें से धुआँ उठ रहा हो। वर्षा के ऐसे भयंकर रूप को देखकर प्रतीत होता था कि शाल के वृक्ष भयभीत होकर धरती में धँस गए हों।

Question 8:

झरने किसके गौरव का गान कर रहे हैं? बहते हुए झरने की तुलना किससे की गई है?

Answer:

झरने कल-कल की ध्वनि से पर्वत के गौरव का गान करते प्रतीत हो रहे थे। कवि ने बहते हुए झरने की तुलना मोतियों की लड़ियों से की है। कवि के अनुसार बहते हुए झरने में झाग के मोटे-मोटे बुलबुले बन रहे थे, जो मोतियों के समान लग रहे थे। इसी कारण कवि ने बहते हुए झरने की तुलना मोतियों की लड़ी से की है।

Question 9:

निम्न का भाव स्पष्ट कीजिए—
है टूट पड़ा भू पर अंबर।

Answer:

प्रस्तुत पंक्ति से लेखक स्पष्ट करना चाहता है कि पर्वत-प्रदेश में होने वाली वर्षा अत्यंत भयंकर थी। पर्वतों पर मूसलाधार वर्षा हो रही थी। बादलों से बड़ी तेज़ी से और मोटे रूप में जल की वर्षा हो रही थी। ऐसी भयंकर वर्षा को देखकर लगता था, मानो आकाश टूटकर धरती पर आ गिरा हो।

Question 10:

निम्न का भाव स्पष्ट कीजिए—
—यों जलद-यान में विचर-विचर
था इंद्र खेलता इंद्रजाल।

Answer:

प्रस्तुत पंक्ति से कवि का भाव यह है कि उस प्राकृतिक वातावरण को देखकर ऐसा प्रतीत होता था, मानो वर्षा का देवता इंद्र बादलों के यान में बैठा हुआ जादू का कोई खेल खेल रहा हो। आकाश में इधर-उधर उमड़ते-घुमड़ते बादलों में छिपे पहाड़ों को देखकर ऐसा लगता था, जैसे पहाड़ अपने पंखों को फड़फड़ाते हुए उड़ रहे हों। कहीं गहरे कोहरे के कारण चारों ओर धुआँ ही धुआँ था, तो कहीं मूसलाधार वर्षा से आकाश के धरती पर टूटकर गिरने जैसा प्रतीत हो रहा था। पहाड़ों का उड़ना, चारों ओर धुआँ होना और मूसलाधार—ये सब जादू के खेल के समान दिखाई दे रहे थे।

Question 11:

निम्न का भाव स्पष्ट कीजिए—
गिरिवर के उर से उठ-उठ कर
उच्चाकांक्षाओं से तरुवर
हैं झाँक रहे नीरव नभ पर
अनिमेष, अटल, कुछ चिंतापर।

Answer:

प्रस्तुत पंक्तियों से कवि स्पष्ट करना चाहता है कि पर्वत की चोटियों पर पेड़ उगे हुए थे, जो पर्वत के हृदय से उठे हुए लगते थे। पर्वत की चोटियों पर उगे ऊँचे-ऊँचे वे पेड़ आकाश में झाँकते हुए ऐसे प्रतीत होते थे, मानो ऊँचा उठने की आकांक्षा से कोई व्यक्ति सब प्रकार की चिंताओं से मुक्त होकर निरंतर अपने लक्ष्य को प्राप्त करने की ओर बढ़ रहा हो।

Question 12:

इस कविता में मानवीकरण अलंकार का प्रयोग किस प्रकार किया गया है? स्पष्ट कीजिए।

Answer:

काव्य में जड़ अथवा चेतन तत्वों पर मानवीय भावों, संबंधों और क्रियाओं के आरोप से उन्हें मनुष्य की तरह व्यवहार करते हुए दिखाना ही मानवीकरण अलंकार है। प्रस्तुत कविता में सर्वत्र मानवीकरण अलंकार दिखाई देता है। पर्वत को अपने फूलरूपी नेत्रों से अपना प्रतिबिंब देखते चित्रित किया गया है। पर्वतों पर लगे हुए पेड़ों को लक्ष्य-प्राप्ति की ओर अग्रसर चिंता मुक्त मनुष्य के समान दर्शाया गया है। इसी प्रकार एक अन्य स्थान पर पर्वत को बादलों के पंख लगाकर उड़ते हुए तथा शाल के पेड़ों को भयभीत होकर धँसते हुए चित्रित करके कवि ने इनका सुंदर मानवीकरण किया है।

Question 13:

आपकी दृष्टि में इस कविता का सौंदर्य इनमें से किस पर निर्भर करता है—

  1. अनेक शब्दों की आवृत्ति पर।
  2. शब्दों की चित्रमयी भाषा पर
  3. कविता की संगीतात्मकता पर
Answer:

(b) शब्दों की चित्रमयी भाषा पर

Question 14:

कवि ने चित्रात्मक शैली का प्रयोग करते हुए पावस ऋतु का सजीव चित्र अंकित किया है। ऐसे स्थलों को छाँटकर लिखिए।

Answer:

(क) मेखलाकार पर्वत अपार अपने सहस्त्र दृग-सुमन फाड़, अवलोक रहा है बार-बार नीचे जल में निज महाकार, जिसके चरणों में पला ताल दर्पण-सा फैला है विशाल!
(ख) गिरिवर के डर से उठ-उठकर उच्चाकांक्षाओं से तरुवर हैं झाँक रहे नीरव नभ पर अनिमेष, अटल, कुछ चिंतापर।
(ग) धँस गए धरा में सभय शाल! उठ हरा धुआँ, जल गया ताल!

Question 15:

इस कविता में वर्षा ऋतु में होने वाले प्राकृतिक परिवर्तनों की बात कही गई है। आप अपने यहाँ वर्षा ऋतु में होने वाले प्राकृतिक परिवर्तनों के विषय में जानकारी प्राप्त कीजिए।

Answer:

वर्षा ऋतु में प्रकृति अत्यंत मोहक रूप धारण कर लेती है। चारों ओर लहलहाते खेत और पेड़ हृदय को आनंद प्रदान करते हैं। नदियाँ, सरोवर, नाले सब जल से भर जाते हैं। मोर नाच उठते हैं। औषधियाँ और वनस्पतियाँ लहलहा उठती हैं। वर्षा की बूँदों से नहाकर पेड़ चमकदार हो जाते हैं। पशु-पक्षी आनंदमग्न हो उठते हैं। चारों ओर जल-ही-जल दिखाई देता है। बागों और बगीचों में फिर से बहार आ जाती है।