NCERT Solutions for Class 10 Hindi Chapter 12 - प्रेमघन की छायास्मृति

Question 1:

बालक से उसकी उम्र और योग्यता से ऊपर के कौन-कौन से प्रश्न पूछे गए ?

Answer:

बालक से उसकी उम्र और योग्यता से ऊपर के निम्नलिखित प्रश्न पूछे गए—

(i) धर्म के कौन-कौन से दस लक्षण हैं?

(ii) नौ रसों के उदाहरण दीजिए।

(iii) चंद्रग्रहण का वैज्ञानिक समाधान बताइए।

(iv) तू आजीवन क्या करेगा?

(v) इंग्लैंड के राजा आठवें हेनरी की स्त्रियों के नाम बताएँ?

Question 2:

बालक ने क्यों कहा कि मैं यावज्जन्म लोकसेवा करूँगा ?

Answer:

मैं यावज्जन्म लोकसेवा करूँगा, बालक ने ऐसा इसलिए कहा क्योंकि उसको पहले से यही सिखाया गया था कि जब भी यह प्रश्न पूछा जाए तो उसका यही उत्तर देना। बालक ने अपनी बुद्धि से यह उत्तर नहीं दिया बल्कि उसने तो अपने स्वभाव के विपरीत रटा-रटाया उत्तर देते हुए ऐसा कहा।

Question 3:

बालक द्वारा इनाम में लड्डू माँगने पर लेखक ने सुख की साँस क्यों भरी ?

Answer:

बालक द्वारा इनाम में लड्डू माँगने पर लेखक ने सुख की साँस ली क्योंकि बालक के उत्तर को सुनकर लेखक को यह तसल्ली मिली कि बालक की स्वाभाविक वृत्ति दम घुटने से बच गई। उसकी इच्छाओं का खून होने से बच गया। लेखक को लग रहा था कि बालक के मुख पर विलक्षण रंगों का परिवर्तन हो रहा था। उसके हृदय में कृत्रिम तथा स्वाभाविक भावों की लड़ाई चल रही थी। वह कृत्रिम एवं स्वाभाविक वृत्ति के मध्य घुट रहा था।

Question 4:

बालक की प्रवृत्तियों का गला घोटना अनुचित है? पाठ में ऐसा आभास किन स्थलों पर होता है कि उसकी प्रवृत्तियों का गला घोटा जाता है?

Answer:

बालक की प्रवृत्तियों का गला घोटने का आभास अनेक स्थलों पर होता है। जब पाठशाला के वार्षिकोत्सव में उसके धर्म के लक्षण क्या हैं? नौ रसों के विषय में, चंद्रग्रहण का वैज्ञानिक समाधान आदि प्रश्न पूछे जाते हैं। उसकी इच्छा के बारे में पूछा जाता है तो वह पहले से ही रटा-रटाया उत्तर देता है कि मैं यावज्जन्म लोकसेवा करूँगा तो सारी भीड़ वाह-वाह करने लग गई। बालक के लड्डू माँगने पर सभी अध्यापक तथा उसका पिता निराश हो गए।

Question 5:

'बालक बच गया'। उसके बचने की आशा है क्योंकि ''लड्डू की पुकार जीवित वृक्ष के हरे पत्तों का मधुर मर्मर था, मेरे काठ की अलमारी की सिर दुखानेवाली खड़खड़ाहट नहीं" कथन के आधार पर बालक की स्वाभाविक प्रवृत्तियों का उल्लेख कीजिए।

Answer:

बालक की स्वाभाविक प्रवृत्तियाँ निम्नलिखित हैं—

(i) बालक बहुत मासूम तथा निडर था।

(ii) बालक ने निर्णय लेने की अद्भुत क्षमता थी।

(iii) वह स्पष्ट वक्ता था।

(iv) उसका हृदय बहुत कोमल था।

Question 6:

लेखक ने धर्म का रहस्य जानने के लिए 'घड़ी के पुर्जे' का दृष्टांत क्यों दिया है ?

Answer:

लेखक ने धर्म का रहस्य जानने के लिए 'घड़ी के पुर्जे' का दृष्टांत दिया है क्योंकि घड़ी के पुर्जे को जैसे एक घड़ीसाज़ ही खोलकर, देखकर ठीक कर सकता है उन पुर्जो को कोई सामान्य व्यक्ति शायद ठीक न कर सके। घड़ीसाज को ही पुज़ोर्ं के बारे में उचित एवं पूरी जानकारी है। वह प्रत्येक पुर्जे का सूक्ष्म से सूक्ष्मतम निरीक्षण कर सकता है।

Question 7:

धर्म का रहस्य जानना वेदशास्त्रज्ञ धर्माचार्यों का ही काम है, आप इस कथन से कहाँ तक सहमत हैं? धर्म संबंधी अपने विचार व्यक्त कीजिए।

Answer:

हम इस कथन से पूर्णत: सहमत हैं कि धर्म का रहस्य जानना वेदशास्त्रज्ञ धर्माचार्यों का ही काम है। धर्म ही नहीं किसी भी विषय की पूर्ण जानकारी उस विषय का ज्ञाता, विद्वान ही दे पाता है। धर्माचार्य भी धर्म का विज्ञान होता है अत: वह ही उसका रहस्य जान सकता है। धर्म एक ऐसी संस्था है जिसकी आधारशिला पर समाज का भवन खड़ा होता है। धर्म ही हमें जीना सिखाता है, धर्म ही हमें प्रेम, प्यार, सहयोग, सद्भावना आदि गुण प्रदान करता है। धर्म मनुष्य को जोड़ता है, तोड़ता नहीं। जो धर्म समाज को सुसंगठित न कर ईर्ष्या, द्वेष, वैर- भावनाएँ फैलाता है उसे धर्म नहीं कहा जा सकता। धर्म तो वही है जो समाज से ईर्ष्या-द्वेष आदि दुर्भावनाओं को दूर कर मनुष्य को जीना सिखाए। सर्वत्र सत्य प्रेम, सद्भावना की त्रिवेणी प्रवाहित कर दे।

Question 8:

घड़ी समय का ज्ञान कराती है। क्या धर्म संबंधी मान्यताएँ या विचार अपने समय का बोध नहीं कराते ?

Answer:

घड़ी जिस प्रकार समय का बोध कराती है, उसी प्रकार धर्म संबंधी मान्यताएँ या विचार भी अपने समय का बोध कराते हैं। घड़ी दिन-रात के प्रतिक्षण का बोध कराती है ठीक वैसे ही धार्मिक मान्यताएँ या विचार भी अपने समय की पूर्ण जानकारी देती हैं। मान्यताओं के आधार पर ही हमें समकालीन समय के सत्य, असत्य, पाप-पुण्य आदि का बोध होता है।

Question 9:

घड़ीसाज़ी का इम्तिहान पास करने से लेखक का क्या तात्पर्य है ?

Answer:

घड़ीसाज़ी का इम्तिहान पास करने से लेखक का तात्पर्य यह है कि वह व्यक्ति अपने कार्य का पूर्ण ज्ञाता हो गया है। अब वह अपने विषय के बारे में पूर्ण जानकारी रखता है। अत: वह घड़ी के प्रत्येक पुर्जे को खोलकर उसका अच्छी तरह से निरीक्षण-परीक्षण कर सकता है तथा घड़ी को ठीक भी कर सकता है। उसे अब घड़ी के पुर्जो का ज्ञान है।

Question 10:
धर्म अगर कुछ विशेष लोगों वेदशास्त्रज्ञ,
धर्माचार्यों, मठाधीशों, पंडे-पुजारियों की
मुट्ठी में है तो आम आदमी और समाज

का उससे क्या संबंध होगा ? अपनी राय लिखिए।

Answer:

पआम आदमी का सीधा संबंध समाज से है और वे एक-दूसरे को गहरा प्रभावित करते है। धर्म आम आदमी को मानसिक सहारा देता है, उसे जीने की राह दिखाता है और आपसी संबंधों को दृढ़ता का आधार प्रदान करता है। धर्म की प्राप्ति उसे संस्कारों के रूप में होती है जो पीढ़ियों से पक कर अपने भीतर न जाने कितने गुणों को समेटे होते हैं। हर धर्म इनसान को इनसानियत का पाठ पढ़ाता है। कोई भी धर्म मानव को पशु बनने के लिए प्रवृत्त नहीं करता। वह लालच और हिंसा से कोसों दूर रहता है। यदि धर्म कुछ विशेष लोगों की मुट्ठी में हो तो उनके एकाधिकार के कारण धर्म की व्यापकता संकुचित हो जाएगी। आम आदमी की निकटता से धर्म का आधार बढ़ता है और धर्म की निकटता से आम आदमी के स्वरूप में विशालता आती है। दो-चार धर्म के ठेकेदारों के हाथ में धर्म की पताका समाज के लिए कदापि हितकर नहीं हो सकती। धर्म की परिभाषा है—धारणाद् धर्मम इत्याहु: अर्थात जिसको धारण करते हैं, वह धर्म है। धर्म को अपनी इच्छा से धारण किया जाता है न कि दूसरों के बहकावे, लालच या भय के धारण। वर्तमान में धर्म का स्वरूप बदलता जा रहा है। इसका संबंध आम आदमी और समाज में ही रहना चाहिए न कि स्वयं को धर्माचार्य समझनेवाले इसे कुछ विशेष लोगों के हाथ में।

Question 11:

जहाँ धर्म पर कुछ मुट्ठीभर लोगों का एकाधिकार धर्म को संकुचित अर्थ प्रदान करता है वहीं धर्म का आम आदमी से संबंध उसके विकास एवं विस्तार का द्योतक है। तर्कसहित व्याख्या कीजिए।

Answer:

धर्म एक व्यापक विषय है जिसके रहस्य को कोई नहीं जान पाया। धर्म पर कुछ लोगों का एकाधिकार होगा तो वह धर्म के अर्थ को संकुचित कर देता है लेकिन आम आदमी से उसका संबंध होने पर उसका अर्थ अत्यंत विस्तृत हो जाता है। जिस प्रकार बल्ब का प्रकाश जितने सीमित दायरे में बंद होता है तो वह उसमें ही रोशनी करता है लेकिन यदि उसी बल्ब को एक विशाल कक्ष या खुले आकाश में जलाया जाए तो उसका प्रकाश विस्तृत क्षेत्र में फैल जाएगा। उसी प्रकार दो-चार लोगों के हाथ की कठपुतली बनकर धर्म का अर्थ संकुचित होगा लेकिन जब वही धर्म का सामान्य व्यक्ति से संबंध हो जाएगा तो उसका अर्थ अत्यंत व्यापक बन जाएगा।

Question 12:

निम्नलिखित का आशय स्पष्ट कीजिए—

(क) वेदशास्त्रज्ञ धर्माचार्यों का ही भाव है कि घड़ी के पुर्ज़े जानें, तुम्हें इससे क्या ?

(ख) 'अनाड़ी के हाथ में चाहे घड़ी मत दो पर जो घड़ीसाज़ी का इम्तिहान पास कर आया है, उसे तो देखने दो।'

(ग) 'हमें तो धोखा देता है कि परदादा की घड़ी जेब में डाले फिरते हो, वह बंद हो गई है, तुम्हें न चाबी देना आता है न पुर्ज़े सुधारना, तो भी दूसरों को हाथ नहीं लगाने देते।'

Answer:

(क) प्रस्तुत पंक्ति का आशय है कि वेदशास्त्रों को जाननेवाले धर्म के आचार्यों का कार्य है कि वे घड़ी के पुर्ज़ों के बारे में जानकारी प्राप्त करें, तुम्हें इससे क्या अभिप्राय, लेखक का कहने का अभिप्राय है कि धर्म के रहस्य को जानने का कार्य केवल धर्म के आचार्यों का है उससे सामान्य व्यक्ति का कोई मतलब नहीं है।

(ख) इस पंक्ति का आशय है कि धर्म के रहस्य जानने पर प्रतिबंध लगानेवाले धर्माचार्यों को संबोधन कर लेखक कहता है कि धर्माचार्यो ! तुम अनाड़ी व्यक्ति के हाथ में चाहे घड़ी मत दो लेकिन जो घड़ीसाज़, घड़ी को ठीक करने की परीक्षा पास कर आया है उसे तो इस घड़ी को देखने दो, उसे तो इजाज़त दो कि वह घड़ी को देख सके। धर्म के रहस्य को जान सके।

(ग) प्रस्तुत पंक्ति में लेखक अज्ञानी मनुष्यों पर व्यंग्य करते हुए कहता है कि हमें तो प्राय: यह धोखा होता है कि तुम अपने परदादा की घड़ी जेब में डालकर फिरते हो, वह जेब में पड़े-पड़े बंद हो गई है लेकिन 'न तुम्हें उसमें चाबी देना आता है और न ही तुम उसके पुर्ज़े सुधार सकते हो। तुम्हारे अंदर इतनी शक्ति या बुद्धि नहीं कि तुम स्वयं इस घड़ी को ठीक कर सको लेकिन फिर भी तुम उसे दूसरों को हाथ नहीं लगाने देते।'

Question 13:

वैदिक काल में हिंदुओं में कैसी लॉटरी चलती थी जिसका ज़िक्र लेखक ने किया है ?

Answer:

वैदिक काल में हिंदुओं में नर पहेली पूछता था और नारी को उसका रहस्य जानना पड़ता था। स्नातक पढ़कर स्नान करके तथा माला पहनकर नर किसी बेटी के बाप के घर पहुँच जाता था वह उसे गौ भेंट करता था पीछे वह कन्या के सामने कहीं सात, कहीं कम या ज़्यादा कुछ मिट्टी के ढेले रख देता था। जिनमें से एक लड़की को उठाने हेतु कहा जाता था। नर इस मिट्टी के बारे में जानता था कि वह कहाँ और किस जगह की मिट्टी है कन्या नहीं। यही लाटरी की पहेली थी।

Question 14:

'दुर्लभ बंधु' की पेटियों की कथा लिखिए।

Answer:

'दुर्लभ बंधु' बाबू हरिश्चंद्र द्वारा रचित नाटक है। इसकी नायिका पुरश्री है। इसमें पुरश्री के सामने सोने, चाँदी और लोहे की तीन पेटियाँ हैं। तीनों पेटियों में से एक में उस नायिका की प्रतिमूर्ति है। स्वयंवर के लिए शर्त है कि जो भी आए वह उनमें से एक को चुने। अकड़बाज़ सोने को चुनता है और उलटे पाँव दौड़ जाता है, लोभी को चाँदी की पिटारी अँगूठा दिखाती है। सच्चा प्रेमी लोहे को छूता है और घुड़दौड़ का पहला इनाम प्राप्त करता है।

Question 15:

'जीवन साथी' का चुनाव मिट्टी के ढेलों पर छोड़ने के कौन-कौन से फल प्राप्त होते हैं ?

Answer:

'जीवन साथी' का चुनाव मिट्टी के ढेलों पर छोड़ने के निम्नलिखित फल प्राप्त होंगे—

(i) वेदि/मिट्टी का ढेला उठाने पर संतान वैदिक पंडित होगी।

(ii) गौ-शाला की मिट्टी का ढेला चुनने पर संतान पशुओं की धनी होगी।

(iii) खेत की मिट्टी छूने पर संतान ज़मींदार होगी।

(iv) मसान की मिट्टी चुनने पर बहुत बड़ा अशुभ होगा। यदि वह नारी विवाहित हो जाए तो घर मशान हो जाए तथा वह जन्मभर जलाती रहेगी।

(v) यदि एक नर के सामने मसान की मिट्टी छू ले तो उस कन्या का कभी विवाह न होगा।

(vi) किसी दूसरे नर के सामने वह वेदि का ढेला उठा ले तो विवाह हो जाए।

Question 16:

मिट्टी के ढेलों के संदर्भ में कबीर की साखी की व्याख्या कीजिए—

पत्थर पूजे हरि मिलें तो मैं पूजू पहार।
इससे तो चक्की भली, पीस खाय संसार॥
Answer:

कबीर जी बाह्याडंबरों तथा अंध-विश्वासों का खंडन करते हुए कहते हैं कि हे मनुष्यो ! यदि पत्थर की पूजा करने से प्रभु की प्राप्ति होती है तो मैं विशाल पर्वत की पूजा कर लेता हूँ। शायद इससे अति शीघ्र प्रभु मिल जाएँ। अरे मूर्खो ! इस पत्थर पूजा से तो चक्की अच्छी है तुम उसकी पूजा करो जो संसार को अनाज पीसकर भोजन खिलाती है।

Question 17:

निम्नलिखित का आशय स्पष्ट कीजिए—

(क) 'अपनी आँखों से जगह देखकर, अपने हाथ से चुने हुए मिट्टी के डगलों पर भरोसा करना क्यों बुरा है और लाखों करोड़ों कोस दूर बैठे बड़े-बड़े मट्टी और आग के ढेलों-मंगल, शनिश्चर और बृहस्पति की कल्पित चाल के कल्पित हिसाब का भरोसा करना क्यों अच्छा है।'

(ख) 'आज का कबूतर अच्छा है कल के मोर से, आज का पैसा अच्छा है कल की मोहर से। आँखों देखा ढेला अच्छा ही होना चाहिए लाखों कोस के तेज पिंड से।'

Answer:

(क) प्रस्तुत गद्यांश का आशय है कि अपनी आँखों से जगह को देखकर तथा अपने ही हाथ से चुने हुए मिट्टी के ढेलों पर विश्वास करना क्यों बुरा है तथा लाखों-करोड़ों मीलों की दूरी पर बैठे हुए बड़े-बड़े मिट्टी के ढेलों पर मंगल, शनि और बृहस्पति ग्रह की कल्पना करना तथा उसके हिसाब का विश्वास करना क्यों अच्छा है अर्थात हम इन मिट्टी के ढेलों पर इस प्रकार की कल्पना क्यों करते हैं ?

(ख) उपर्युक्त गद्यांश का आशय है कि कल के मोर से आज का कबूतर अच्छा है, आनेवाले कल के अति महान विद्वान से आज का कम ज्ञानी अधिक अच्छा है। लेखक कहता है कि कल की मोहरों से आज का कम पैसा श्रेष्ठ है। फिर लाखों मीलों के तेजस्वी पिंड से आँखों देखा मिट्टी का ढेला श्रेष्ठ ही होना चाहिए।