NCERT Solutions for Class 10 Hindi Chapter 11 - प्रेमघन की छायास्मृति

Question 1:

लेखक ने अपने पिता जी की किन-किन विशेषताओं का उल्लेख किया है?

Answer:

लेखक ने अपने पिता जी की निम्नलिखित विशेषताओं का उल्लेख किया है—

(i) लेखक के पिता जी फारसी के श्रेष्ठ विद्वान थे।

(ii) वे पुरानी हिंदी-कविता के बड़े प्रेमी थे।

(iii) उन्हें फारसी कवियों की उक्तियों को हिंदी कवियों की उक्तियों के साथ मेल करने में बड़ा आनंद आता था।

(iv) वे रात को प्राय: घर के सब लोगों को एकत्र करके 'रामचरितमानस' और 'रामचंद्रिका' को बड़े चित्ताकर्षक ढंग से पढ़ा करते थे।

(v) आधुनिक हिंदी साहित्य में भारतेंदु जी के नाटक उन्हें बहुत प्रिय थे।

(vi) वे बहुत मिलनसार कर्तव्यपरायण व्यक्ति थे।

Question 2:

बचपन में लेखक के मन में भारतेंदु जी के संबंध में कैसी भावना जगी रहती थी?

Answer:

बचपन में लेखक के मन में भारतेंदु जी के संबंधों में एक अपूर्व मधुर भावना संचरित रहती थी। उनकी बुद्धि 'सत्य हरिश्चंद्र' नाटक के नायक राजा हरिश्चंद्र तथा भारतेंदु में कोई भेद नहीं कर पाती थी। वे भारतेंदु जी को सत्य हरिश्चंद्र के समान महान समझते थे इसलिए हरिश्चंद्र शब्द उनके मन में श्रद्धा भाव तथा अपूर्व माधुर्य का संचार करता था।

Question 3:

उपाध्याय बद्रीनारायण चौधरी 'प्रेमघन' की पहली झलक लेखक ने किस प्रकार देखी?

Answer:

एक दिन लेखक अपनी मित्र-मंडली के साथ डेढ़ मील का सफ़र तय कर 'प्रेमघन' जी के मकान के सामने खड़े हो गए। नीचे का बरामदा खाली था, लेकिन ऊपर का बरामदा सघन लताओं से ढका हुआ था। बीच-बीच में खंभे और खाली जगह दिखाई पड़ती थी। उसी ओर मुझसे देखने के लिए कहा गया लेकिन वहाँ कोई दिखाई न दिया। कुछ देर बाद एक लड़के ने उँगली से ऊपर की ओर इशारा किया। वहाँ लताओं के समूह के बीच एक मूर्ति खड़ी दिखाई पड़ी। जिसके दोनों कंधों पर बाल बिखरे हुए थे। उसका एक हाथ कंधे पर था। इस प्रकार लेखक ने प्रेमघन की पहली झलक देखी।

Question 4:

लेखक का हिंदी-साहित्य के प्रति झुकाव किस तरह बढ़ता गया?

Answer:

लेखक के पिता बहुत बड़े विद्वान थे। अत: बचपन से ही उनका प्रभाव उनपर पड़ा। उनकी बचपन से ही साहित्य में रुचि हो गई थी। बचपन से ही अपने-अपने पिता के मुख से रामचरितमानस तथा रामचंद्रिका को चित्ताकर्षक ढंग से सुनते थे। उनके पिता भारतेंदु हरिश्चंद्र के नाटक भी उन्हें सुनाया करते थे। जिससे लेखक के मन में उनके प्रति अपूर्व भावना पैदा हो गई थी। उनकी साहित्यकारों के प्रति अटूट श्रद्धा थी। वे प्रेमघन, केदारनाथ पाठक, उमाशंकर द्विवेदी आदि साहित्यकारों से मिला करते थे। धीरे-धीरे वे साहित्य-मंडली के साथ बैठने लग गए। इस प्रकार लेखक का हिंदी-साहित्य के प्रति झुकाव बढ़ता गया।

Question 5:

निस्संदेह शब्द को लेकर लेखक ने किस प्रसंग का ज़िक्र किया है ?

Answer:

लेखक की मित्रमंडली में प्राय: बोलचाल की हिंदी में बातें हुआ करती थी, जिसमें 'निस्संदेह' शब्द का प्रयोग किया जाता था। जिस स्थान पर वह रहता था वहाँ अधिकतर वकील, मुख्तार तथा कचहरी के अफ़सरों की बस्ती थी। वे लोग उर्दू भाषी थे और मित्रमंडली प्राय: बोलचाल की हिंदी का प्रयोग करती थी । इसलिए उन लोगों के कानों में इनकी बोली कुछ अनोखी लगती थी। इसी से उन लोगों ने इनका नाम 'निस्संदेह' रख दिया था।

Question 6:

पाठ में कुछ रोचक घटनाओं का उल्लेख है। ऐसी तीन घटनाएँ चुनकर उन्हें अपने शब्दों में लिखिए।

Answer:

पाठ में अनेक रोचक घटनाओं का उल्लेख है उनमें से कुछ प्रमुख हैं—

(i) एक दिन कई लोग बैठे बातचीत कर रहे थे कि इतने में वहाँ एक पंडित जी आ गए। चौधरी साहब ने पूछा कि उनका क्या हाल है ? पंडित जी बोले—'कुछ नहीं' आज एकादशी थी। कुछ जल खाया है और चले आ रहे हैं। उनसे पूछा कि जल ही खाया है कि कुछ फलाहार भी पिया है।

(ii) एक दिन चौधरी साहब के एक पड़ोसी उनके यहाँ आए। उनसे एक प्रश्न किया कि साहब ! एक शब्द मैं प्राय: सुनता हूँ लेकिन उसका ठीक अर्थ समझ नहीं आया। आखिर घनचक्कर का क्या अर्थ है? उसके क्या लक्षण हैं? पड़ोसी महाशय बोले ! वाह! यह क्या मुश्किल बात है। एक दिन रात को सोने से पहले कागज़-कलम लेकर सवेरे से रात तक जो-जो काम किए हों, उन सबको लिखकर, पढ़ जाइए।

(iii) लेखक अपनी लेखक मंडली के साथ बातचीत किया करते थे। बातचीत सामान्य हिंदी में हुआ करती थी, जिसमें निस्संदेह आदि शब्द आया करता था। जिस स्थान पर लेखक रहता था वहाँ अधिकतर वकील, मुख्तार, कचहरी के अफ़सर रहते थे। वे उर्दू भाषी लोग थे। अत: उनके कानों में सामान्य हिंदी अनोखी लगती थी। इसी से उन लोगों ने लेखक मंडली का नाम निस्संदेह रख दिया था।

Question 7:

''इस पुरातत्व की दृष्टि में प्रेम और कुतुहल का अद्भुत मिश्रण रहता था।" यह कथन किसके संदर्भ में कहा गया और क्यों? स्पष्ट कीजिए।

Answer:

यह कथन बद्रीनारायण चौधरी 'प्रेमघन' के संदर्भ में कहा गया है, क्योंकि लेखक उन्हें पुरानी चीज़ के समान पुराने विचारों का आदमी समझा करता था। जब लेखक ने उनको देखा तो उनके विचार बदल गए, क्योंकि चौधरी एक बहुत धनी व्यक्ति थे। वसंत-पंचमी, होली आदि अवसरों पर उनके यहाँ खूब नाचरंग तथा उत्सव हुआ करते थे। उनकी प्रत्येक अदा से रियासत और तबीयतदारी झलकती थी।

Question 8:

प्रस्तुत संस्मरण में लेखक ने चौधरी साहब के व्यक्तित्व के किन-किन पहलुओं को उजागर किया है?

Answer:

प्रस्तुत संस्मरण में लेखक ने चौधरी साहब के व्यक्तित्व के निम्नलिखित पहलुओं को उजागर किया है—

(i) चौधरी साहब लंबे-लंबे बाल रखते थे जो उनके दोनों कंधों पर बिखरे रहते थे।

(ii) उन्हें होली, वसंत-पंचमी आदि त्योहार मनाने का खूब शौक था इसीलिए उनके यहाँ प्रत्येक त्योहार पर नाचरंग और उत्सव हुआ करते थे।

(iii) उनकी प्रत्येक अदा से रियासत और तबीयतदारी अमीरी झलकती थी।

(iv) उनके मुख से निकलनेवाली प्रत्येक बात में विलक्षण वक्रता रहती थी।

(v) उनकी बातचीत का ढंग उनके लेखों के ढंग से एकदम निराला था।

(vi) उनके संवाद बहुत रोचक और रसीले थे।

(vii) वे नौकरों के साथ भी सम्मानजनक व्यवहार करते थे।

Question 9:

समवयस्क हिंदी प्रेमियों की मंडली में कौन-कौन से लेखक मुख्य थे ?

Answer:

पसमवयस्क हिंदी प्रेमियों की मंडली में श्रीमान काशीप्रसाद जायसवाल, बा० भगवानदास हालना, पंडित बद्रीनाथ गौड़, पंडित उमाशंकर द्विवेदी आदि लेखक मुख्य थे।

Question 10:

'भारतेंदु जी के मकान के नीचे का यह हृदय परिचय बहुत शीघ्र गहरी मित्रता में परिणत हो गया।' कथन का आशय स्पष्ट कीजिए।

Answer:

प्रस्तुत पंक्ति का आशय है कि मैं 'लेखक' एक बार किसी आदमी के साथ काशी आए। वे घूमते-घूमते चौखंभा की ओर जा निकले। वहीं एक घर से उन्हें पंडित केदारनाथ पाठक निकलते दिखाई पड़े। पाठक जी को प्राय: वे पुस्तकालय में देखा करते थे। इसलिए वे लेखक को देखकर वहीं रुक गए। बातचीत से मालूम हुआ कि जिस घर से वे निकले थे वह भारतेंदु जी का घर था। लेखक बड़ी चाह और कुतुहल की दृष्टि से कुछ देर तक उस मकान की ओर अनेक भावनाओं में लीन होकर देखता रहा। पाठक जी इस भावुकता को देखकर बहुत प्रसन्न हुए तथा दूर तक उनके साथ बातचीत करते चले गए। लेखक तथा पाठक के इस छोटे से सफ़र में ही हार्दिक संबंध बन गए। वहाँ लेखक को ऐसा प्रतीत हुआ कि भारतेंदु जी के मकान के नीचे का यह हृदय परिचय बहुत शीघ्र एक मित्रता में परिणत हो गया।