Question 1:
डी० एन० ए० प्रतिकृति का प्रजनन में क्या महत्त्व है?
Answer:
प्रजनन में डी० एन० ए० प्रतिकृति प्राणी के अस्तित्व के लिए बहुत आवश्यक है। यह स्पीशीज़ में पाई जाने वाली विभिन्न विशेषताओं के अस्तित्व को बना कर रखने में सहायक है। चाहे डी० एन० ए० प्रतिकृति की प्रणाली पूरी तरह से यथार्थ नहीं है पर फिर भी इसमें विभिन्नता बहुत धीमी गति से उत्पन्न होती है। इसमें नई विभिन्नता के साथ-साथ पुरानी पीढ़ियों की विभिन्नताएं संग्रहित रहती हैं इसलिए समष्टि के दो जीवों में विभिन्नताओं के पैटर्न भी काफी अलग होते हैं। इसके द्वारा दो या अधिक एकल जीवों का विभिन्नताओं के नए संयोजन उत्पन्न होते हैं क्योंकि इस प्रक्रम में दो विभिन्न जीव भाग लेते हैं। डी० एन० ए० का प्रतिकृति पीढ़ियों तक गुणों को आगे लेकर चलती है। इससे शारीरिक डिजाइन में समता बनी रहती है पर नई विभिन्नताओं के कारण इसमें परिवर्तन आते रहते हैं। इससे प्राणी का अस्तित्व बना रहता है चाहे उसमें कुछ अंतर आ जाता है। डी० एन० ए०आनुवंशिक गुणों का संदेश है जो जन्म से संतान को प्राप्त होता है। इसके केंद्रक में प्रोटीन संश्लेषण के लिए सूचना विद्यमान होती है। सूचना के बदल जाने पर प्रोटीन भी बदल जाएगी जिस कारण शारीरिक अधिकल्प में भी विविधता उत्पन्न हो जाती है। डी० एन० ए० प्रतिकृति बनने के साथ-साथ दूसरी कोशिकीय संरचनाओं का सृजन भी होता है। जैव-रासायनिक प्रक्रियाओं के कारण डी० एन० ए० की प्रतिकृति में कुछ विभिन्नता उत्पन्न हो जाती है।
Question 2:
जीवों में विभिन्नता स्पीशीज़ के लिए तो लाभदायक है परंतु व्यष्टि के लिए आवश्यक नहीं है, क्यों?
Answer:
जीवों पर परितंत्र के स्थान पर निकेत का सीधा प्रभाव पड़ता है। किसी प्रजाति की समष्टि के स्थायित्व का संबंध जनन से है। जब निकेत में ऐसे परिवर्तन आ जाते हैं जो जीवों के नियंत्रण से बाहर होते हैं जो उग्र परिवर्तन दिखाई देते हैं। इनके परिणामस्वरूप समष्टि का समूल विनाश संभव होता है। यदि समष्टि के जीवों में कुछ विभिन्नता होगी तो उनके जीवित रहने की कुछ संभावना है। वैश्विक उष्मीकरण के कारण यदि जल का ताप अधिक बढ़ जाए तो शीतोष्ण जल में पाए जाने वाले जीवाणुओं का नाश हो जाएगा पर गर्मी को सहन कर सकने वाले जीवाणु जीवित रहेंगे और वृद्धि करेंगे। इसलिए विभिन्नताएँ स्पीशीज की उत्तर जीविता बनाए रखने में उपयोगी हैं। विभिन्नता स्पीशीज़ के लिए तो लाभदायक है पर व्यष्टि के लिए यह आवश्यक नहीं है।
Question 3:
द्विखंडन बहुखंडन से किस प्रकार भिन्न है?
Answer:
द्विखंडन से कोई एक कोशिका दो छोटे और लगभग समान भागों में बंट जाती है। द्विखंडन एक निर्धारित तल से होता है। लेकिन बहुखंडन में एक कोशिक जीव एक साथ अनेक संतति कोशिकाओं में विभाजित हो जाते हैं। द्विखंडन में सिस्ट नहीं बनता लेकिन बहुखंडन में सिस्ट बनता है। अमीबा और पैरामीशियम में द्विखंडन होता है। काला ज़ार के रोगाणु लेसमानियाँ और मलेरिया परजीवी प्लाज्मोडियम में बहुखंडन होता है।
Question 4:
बीजाणु द्वारा जनन से जीव किस प्रकार लाभान्वित होता है?
Answer:
बीजाणु वृद्धि करके राइजोपस के नए जीव उत्पन्न करते हैं। बीजाणु के चारों ओर एक मोटी भित्ति होती है जो प्रतिकूल परिस्थितियों में उसकी रक्षा करती है। इनमें उत्पन्न बीजाणुओं की संख्या अधिक होती है इसलिए उनके बचने की संभावना ज्यादा होती है। वे सरलता से विपरीत परिस्थितियों में पाए जा सकते हैं। नम सतह के संपर्क में आने पर वे वृद्धि करने लगते हैं
Question 5:
क्या आप कुछ कारण सोच सकते हैं जिससे पता चलता हो कि जटिल संरचना वाले जीव पुनरुद्भवन द्वारा नई संतति उत्पन्न नहीं कर सकते?
Answer:
जटिल संरचना वाले जीवों में जनन भी जटिल होता है। पुनरुद्भवन एक प्रकार से परिवर्धन है जिसमें जीव के गुणों में अंतर नहीं आता। यह जनन के समान नहीं है। जटिल संरचना वाले जीव पुनरुद्भवन के द्वारा किसी भी भाग को काट कर सामान्यत: वैसा जीव उत्पन्न नहीं कर सकते। क्योंकि उन का शरीर अंगों और अंग तंत्रों में विभाजित होता है।
Question 6:
कुछ पौधों को उगाने के लिए कायिक प्रवर्धन का उपयोग क्यों किया जाता है?
Answer:
प्राय: जो पौधे बीज उत्पन्न नहीं करते उनकी जड़, तना, पत्तियों आदि को उपयुक्त परिस्थितियों में विकसित करके नया पौधा प्राप्त कर लिया जाता है। प्राय: एकल पौधे इस क्षमता का उपयोग जनन-विधि के रूप में करते हैं। उन्हीं को उगाने के लिए कायिक प्रवर्धन किया जाता है।
Question 7:
DNA की प्रतिकृति बनाना जनन के लिए आवश्यक क्यों है?
Answer:
जनन की प्रक्रिया से वैसी ही समरूप संतान की प्राप्ति की जाती है जैसे जन्म देने वाले हों। DNA की प्रतिकृति के परिणामस्वरूप ही वंशानुगत गुणों से युक्त संतान प्राप्त होती है। इसीलिए DNA की प्रतिकृति बनाना जनन के लिए आवश्यक है। यह जीवन की निरंतरता को बनाए रखता है और जीवों में जाति विशेष के गुण बने रहते हैं।
Question 8:
परागण क्रिया निषेचन से किस प्रकार भिन्न है?
Answer:
Question 9:
शुक्राशय एवं प्रोस्टेट ग्रंथि की क्या भूमिका है?
Answer:
शुक्राशय एवं प्रोस्टेट ग्रंथि अपना स्राव शुक्र वाहिका में डालते हैं जिससे शुक्राणु एक तरल
माध्यम में आ जाते हैं। इसके कारण इनका स्थानांतरण सरलता से होता है। साथ ही यह स्राव उन्हें
पोषण भी प्रदान करता है।
शुक्राशय से स्रावित द्रव में फ्रुक्टोज, सिटरेट और अनेक प्रोटीन होते हैं। ये दोनों वीर्य की
क्रमश: प्रतिशतता 60 : 30 में बनाते हैं। शुक्राशय योनि में संकुचन को उद्दीप्त करता है और
प्रोस्टेट मूत्र की अम्लीयता को उदासीन करता है।
Question 10:
यौवनारंभ के समय लड़कियों में कौन-से परिवर्तन दिखाई देते हैं?
Answer:
1. शरीर के कुछ नए भागों जैसे काँख और जाँघों के मध्य जननांगी क्षेत्र में बाल गुच्छ निकल आते
हैं।
2. हाथ, पैर पर महीन रोम आ जाते हैं।
3. त्वचा तैलीय हो जाती है। कभी-कभी मुहाँसे निकल आते हैं।
4. वक्ष के आकार में वृद्धि होने लगती है।
5. स्तनाग्र की त्वचा का रंग गहरा भूरा होने लगता है।
6. रजोधर्म होने लगता है।
7. अंडाशय में अंड परिपक्व होने लगते हैं।
8. ध्वनि सुरीली हो जाती है।
9. विपरीत लिंग की ओर आकर्षण होने लगता है।
Question 11:
माँ के शरीर में गर्भस्थ भ्रूण को पोषण किस प्रकार प्राप्त होता है?
Answer:
गर्भस्थ भ्रूण को माँ के रुधिर से पोषण प्राप्त होता है। इसके लिए प्लेसेंटा की संरचना प्रकृति के द्वारा की गई है। यह एक तश्तरी नुमा संरचना है जो गर्भाशय की भित्ति में धंसी होती है। इसमें भ्रूण की ओर से ऊतक के प्रवर्ध होते हैं। माँ के ऊतकों में रक्त स्थान होते हैं जो प्रवर्ध को ढांपते हैं। ये माँ से भ्रूण को ग्लूकोज़, ऑक्सीजन और अन्य पदार्थ प्रदान करते हैं।
Question 12:
यदि कोई महिला कॉपर-T का प्रयोग कर रही है तो क्या यह उसकी यौन-संचरित रोगों से रक्षा करेगा?
Answer:
नहीं, कॉपर-T किसी भी अवस्था में महिला की यौन-संचरित रोगों से रक्षा नहीं करेगा।