Question 1:
हमारे जैसे बहुकोशिकीय जीवों में ऑक्सीजन की आवश्यकता पूरी करने में विसरण क्यों अपर्याप्त है?
Answer:
बहुकोशी जीवों में उनकी केवल बाहरी त्वचा की कोशिकाएं और रंध्र ही आस-पास के वातावरण से सीधे संबंधित होते हैं। उनकी सभी कोशिकाएं तथा भीतरी अंग सीधे अपने आस-पास के वातावरण से संबंधित नहीं रह सकते। वे ऑक्सीजन की अपनी आवश्यकता पूरी करने के लिए विसरण पर आश्रित नहीं रह सकते। श्वसन, गैसों के आदान-प्रदान तथा अन्य कार्यों के लिए विसरण बहुकोशी जीवों की आवश्यकता के लिए बहुत कम और धीमा है। यदि हमारे शरीर में विसरण के द्वारा ऑक्सीजन गति करती तो हमारे फुफ्फुस से ऑक्सीजन के एक अणु को पैर के अंगूठे तक पहुँचने में लगभग 3 वर्ष का समय लगता। हम स्वयं ही सोच सकते हैं कि उस अवस्था में क्या हमारा जीवन संभव होता? हमारे शरीर में विद्यमान रक्त में हीमोग्लोबिन ही तेज़ी से हमें ऑक्सीजन कराता है।
Question 2:
कोई वस्तु सजीव है, इसका निर्धारण करने के लिए हम किस मापदंड का उपयोग करेंगे?
Answer:
सभी जीवित वस्तुएं सजीव कहलाती हैं। वे रूप-आकार, रंग आदि की दृष्टि से समान भी होते हैं तथा
भिन्न भी। पशु गति करते हैं, बोलते हैं, साँस लेते हैं, खाते हैं, वंश वृद्धि करते हैं और
उत्सर्जन करते हैं। पेड़-पौधे बोलते नहीं हैं, भागते-दौड़ते नहीं हैं पर फिर भी वे सजीव हैं। अति
सूक्ष्म स्केल पर होने वाली उनकी गतियाँ दिखाई नहीं देतीं। अणुओं की गतियाँ न होने की अवस्था
में वस्तु को निर्जीव माना जाता है। यदि वस्तु में अणुओं में गति हो तो वस्तु सजीव मानी जाती
है। सामान्यत: सजीवों में निम्नलिखित विशेषताएँ होती हैं—
1. सजीवों की संरचना सुसंगठित होती है।
2. उनमें कोशिकाएँ और ऊतक होते हैं।
3. उनकी संगठित और सुव्यवस्थित संरचना समय के साथ पर्यावरण के प्रभाव से विघटित होने लगती है।
4. सजीवों की निश्चित रूप से मृत्यु होती है।
5. सजीव अपने शरीर की मरम्मत और अनुरक्षण करते हैं। उनकी संरचना अणुओं से हुई है और उन्हें
अणुओं को लगातार गतिशील बनाए रखना चाहिए।
6. सजीवों मे विशेष सीमा में वृद्धि होती है।
7. उनके शरीर में रासायनिक क्रियाओं की शृंखला चलती है। उनमें उपचय-अपचय अभिक्रियाएँ होती हैं।
Question 3:
किसी जीव द्वारा किन कच्ची सामग्रियों का उपयोग किया जाता है?
Answer:
किसी जीव के द्वारा जिन कच्ची सामग्रियों का उपयोग किया जाता है, वे हैं—
1. ऊर्जा प्राप्ति के लिए उचित पोषण।
2. श्वसन के लिए पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन।
Question 4:
जीवन के अनुरक्षण के लिए आप किन प्रक्रम को आवश्यक मानेंगे?
Answer:
जीवन के अनुरक्षण के लिए जो प्रक्रम आवश्यक माने जाने चाहिएं, वे हैं—पोषण, श्वसन, परिवहन और उत्सर्जन।
Question 5:
स्वयंपोषी पोषण तथा विषमपोषी पोषण में क्या अंतर हैं?
Answer:
स्वयंपोषी पोषण और विषमपोषी (परपोषी) पोषण में अंतर—
Question 6:
प्रकाश संश्लेषण के लिए आवश्यक कच्ची सामग्री पौधा कहाँ से प्राप्त करता है?
Answer:
प्रकाश संश्लेषण के लिए आवश्यक कच्ची सामग्री कार्बन-डाइऑक्साइड ऊर्जा, खनिज लवण तथा जल है। पौधे कार्बन डाइऑक्साइड वातावरण से प्राप्त करते है और जल भूमि से।
Question 7:
हमारे अमाशय में अम्ल की भूमिका क्या है?
Answer:
अमाशय की भित्ति में उपस्थित जठर ग्रंथियों से हाइड्रोक्लोरिक अम्ल उत्पन्न होता है। यह अम्लीय माध्यम तैयार करता है जो पेप्सिन एंजाइम की क्रिया में सहायक होता है। यह भोजन को सड़ने से रोकता है। यह भोजन के साथ आए जीवाणुओं को नष्ट कर देता है। भोजन में उपस्थित Ca को कोमल बनाता है। यह पाइलोरिफ छिद्र के खुलने और बंद होने पर नियंत्रण रखता है। यह निष्क्रिय एंजाइमों (enzymes) को सक्रिय अवस्था में लाता है।
Question 8:
पाचक एंजाइमों का क्या कार्य है?
Answer:
एंजाइम वे जैव उत्प्रेरक होते हैं जो जटिल पदार्थों को सरल पदार्थों में खंडित करने में सहायता प्रदान करते हैं। ये पाचन क्रिया में कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन और वसा के पाचन में सहायक बनते हैं। उदर में लाइपेज नामक एंजाइम वसा को वसीय अम्ल और ग्लिसरॉल में बदलता है। रेनिन नामक एंजाइम क्रिया कर पेप्सिन की सहायता करता है और इसमें दूध-प्रोटीन पर पेप्सिन की क्रिया अवधि बढ़ जाती है। पित्त रस भोजन के माध्यम को क्षारीय बनाकर वसा को छोटे-छोटे टुकड़ों में तोड़ देता है और उनका इमल्सीकरण करता है। अग्न्याशय रस इमल्शन बने वसीय को वसा अम्ल और ग्लिसरॉल में बदल देता है। एमाइलेज भोजन के कार्बोहाइड्रेट को माल्टोज़ में बदल देता है। छोटी आंत की आंतरिक दीवारों से पैप्टिडेन, आंत्र लाइपेज़, सुक्रेज, माल्टोज़ और लेक्टोज़ निकलकर भोजन को पचने में सहायक बनते हैं। ये एंजाइम प्रोटीन को अमीनों अम्ल, जटिल कार्बोहाइड्रेट को ग्लूकोज़ में तथा वसा को वसा अम्ल तथा ग्लिसरॉल में बदल देते है।
Question 9:
पचे हुए भोजन को अवशोषित करने के लिए क्षुद्रांत्र को कैसे अभिकल्पित किया गया है?
Answer:
पचे हुए भोजन को आंत्र की भित्ति अवशोषित कर लेती है। क्षुद्रांत्र के आंतरिक आस्तर पर अँगुली जैसे अनेक प्रवर्ध होते हैं, जिन्हें दीर्घ रोम कहते हैं। ये अवशोषण के सतही क्षेत्रफल को बढ़ा देते हैं। इनमें रुधिर वाहिकाओं की अधिकता होती है जो भोजन को अवशोषित करके शरीर की प्रत्येक कोशिका तक पहुँचाने का कार्य करते हैं। यहाँ इसका उपयोग ऊर्जा प्राप्त करने, नए ऊतकों का निर्माण करने तथा पुराने ऊतकों की मरम्मत के लिए किया जाता है।
Question 10:
श्वसन के लिए ऑक्सीजन प्राप्त करने की दिशा में एक जलीय जीव की अपेक्षा स्थलीय जीव किस प्रकार लाभप्रद हैं?
Answer:
जलीय जीव जल में घुली हुई ऑक्सीजन का श्वसन के लिए उपयोग करते हैं। जल में घुली हुई ऑक्सीजन की मात्रा वायु में उपस्थित ऑक्सीजन की मात्रा की तुलना में बहुत कम है। इसलिए जलीय जीवों के श्वसन की दर स्थलीय जीवों की अपेक्षा अधिक तेज़ होती है। मछलियाँ अपने मुँह के द्वारा जल लेती हैं और बल-पूर्वक इसे क्लोम तक पहुँचाती हैं। वहाँ जल में घुली हुई ऑक्सीजन को रुधिर प्राप्त कर लेता है।
Question 11:
ग्लूकोज़ के ऑक्सीकरण से भिन्न जीवों में ऊर्जा प्राप्त करने के विभिन्न पथ क्या हैं?
Answer:
श्वसन एक जटिल पर अति आवश्यक प्रक्रिया है। इसमें ऑक्सीजन और कार्बन डाइऑक्साइड का आदान-प्रदान
होता है तथा ऊर्जा मुक्त करने के लिए खाद्य का ऑक्सीकरण होता है।
श्वसन एक जैव रासायनिक प्रक्रिया है। श्वसन क्रिया दो प्रकार की होती है—
(क) वायवीय श्वसन (ऑक्सी श्वसन)—इस प्रकार के श्वसन में अधिकांश प्राणी ऑक्सीजन का उपयोग करके
श्वसन करते हैं। इस प्रक्रिया में ग्लूकोज़ पूरी तरह से कार्बन डाइऑक्साइड और जल में विखंडित हो
जाता है। यह माइटोकॉँड्रिया में होती हैं।
चूंकि यह प्रक्रिया वायु की उपस्थिति में होती है इसलिए इसे वायवीय श्वसन कहते हैं।
(ख) अवायवीय श्वसन (अनाक्सी श्वसन)—यह श्वसन प्रक्रिया ऑक्सीज़न की अनुपस्थिति में होती है।
जीवाणु और यीस्ट इस क्रिया से श्वसन करते हैं। इस प्रक्रिया में इथाइल एल्कोहल, CO2
तथा ऊर्जा उत्पन्न होती है।
(ग) ऑक्सीजन की कमी हो जाने पर—कभी-कभी हमारी पेशी कोशिकाओं में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है।
पायरूवेट के विखंडन के लिए दूसरा रास्ता अपनाया जाता है। तब पायरूवेट एक अन्य तीन कार्बन वाले
अणु लैक्टिक अम्ल में बदल जाता है। इसके कारण क्रैम्प हो जाता है।
Question 12:
मनुष्यों में ऑक्सीजन तथा कार्बनडाइऑक्साइड का परिवहन कैसे होता है?
Answer:
जब हम श्वास अंदर लेते हैं तब हमारी पसलियाँ ऊपर उठती हैं और डायाफ्राम चपटा हो जाता है। इस
कारण वक्षगुहिका बढ़ी हो जाती है और वायु फुफ्फुस के भीतर चली जाती है। वह विस्तृत कूपिकाओं को
भर लेती है। रुधिर सारे शरीर से CO2 को कूपिकाओं में छोड़ने के लिए लाता है। कूपिका
रुधिर वाहिका का रुधिर कूपिका वायु से ऑक्सीजन लेकर शरीर की सभी कोशिकाओं तक पहुँचाता है। श्वास
चक्र के समय जब वायु अंदर और बाहर होती है तब फुफ्फुस वायु का अवशिष्ट आयतन रखते हैं। इससे
ऑक्सीजन के अवशोषण और कार्बन डाइऑक्साइड के मोचन के लिए पर्याप्त समय मिल जाता है।
Question 13:
गैसों के विनिमय के लिए मानव-फुफ्फुस में अधिकतम क्षेत्रफल को कैसे अधिकाल्पित किया है?
Answer:
जब हम श्वास अंदर लेते हैं तब हमारी पसलियां ऊपर उठती हैं। वे बाहर की ओर झुक जाती हैं। इसी समय डायाफ्राम की पेशियां संकुचित तथा उदर पेशियां शिथिल हो जाती हैं। इससे वक्षीय गुहा का क्षेत्रफल बढ़ता है और साथ ही फुफ्फुस का क्षेत्रफल भी बढ़ जाता है जिसके परिणामस्वरूप श्वसन पथ से वायु अंदर आकर फेफड़े में भर जाती है।
Question 14:
मानव में वहन तंत्र के घटक कौन-से हैं? इन घटकों के क्या कार्य हैं?
Answer:
मानव में वहन तंत्र के प्रमुख दो घटक हैं—रुधिर और लसीका।
(क) रुधिर के कार्य— (1) फेफड़ों से ऊतकों तक ऑक्सीजन का परिवहन करना।
(2) विभिन्न ऊतकों में कार्बन-डाइऑक्साइड को एकत्रित करके उसका फेफड़ों तक परिवहन करना।
(3) उपाचय में बने विषैले एवं हानिकारक पदार्थों को एकत्रित करके अहानिकारक बनाने के लिए यकृत
में भेजना।
(4) विभिन्न प्रकार के उत्सर्जी पदार्थों का उत्सर्जन हेतु वृक्कों तक पहुँचाना।
(5) विभिन्न प्रकार के हॉर्मोनों का परिवहन करना।
(6) छोटी आँतों से परिजय भोज्य पदार्थों का अवशोषण भी रक्त प्लाज़्मा द्वारा होता है जिसे यकृत
और विभिन्न ऊतकों में भेज दिया जाता है।
(7) शरीर के तापक्रम को उष्मा वितरण द्वारा नियंत्रित रखना।
(8) रुधिर के श्वेत रक्त कणिकाएं हानिकारक बैक्टीरियाओ, मृतकोशिकाओं तथा रोगाणुओं का भक्षण करके
उन्हें नष्ट कर देता है।
(9) विभिन्न प्रकार के एंज़ाइमों का परिवहन करता है।
(10) पहिकाएं तथा फाइब्रिनोजि़न नामक प्रोटीन रक्त में उपस्थित होती है जो रक्त का थक्का जमने
में सहायक होते हैं।
(ख) लसीका के कार्य— (1) लसिका ऊतकों तक भोज्य पदार्थों का संवहन करती है।
(2) ऊतकों से उत्सर्जी पदार्थों को एकत्रित करती है।
(3) हानिकारक जीवाणुओं को नष्ट करके शरीर की रक्षा करती है।
(4) शरीर के घाव भरने में सहायक होती है।
(5) पचे वसा का अवशोषण करके शरीर के विभिन्न भागों तक ले जाती है।
Question 15:
स्तनधारी तथा पक्षियों में ऑक्सीजनित तथा विऑक्सीजनित रुधिर को अलग करना क्यों आवश्यक हैं?
Answer:
स्तनधारी तथा पक्षियों में उच्च तापमान को बनाए रखने के लिए अपेक्षाकृत अधिक ऊर्जा की आवश्यकता होती है। ऑक्सीजनित और विऑक्सीजनित रुधिर को हृदय के दायें और बायें भाग से आपस में मिलने से रोकना परम आवश्यक है। इस प्रकार का बंटवारा शरीर को उच्च दक्षतापूर्ण ऑक्सीजन की पूर्ति करता है।
Question 16:
उच्च संगठित पादप में वहन तंत्र के घटक क्या हैं?
Answer:
उच्च संगठित पादप में वहन तंत्र के दो घटक हैं— ज़ाइलम और फ्लोयम। पादपों में जिस जल की रंध्र के द्वारा हानि होती है उसका प्रतिस्थापन पत्तियों में ज़ाइलम वाहिकाओं द्वारा हो जाता है। कोशिका से जल के अणुओं का वाष्पण एक चूषण उत्पन्न करता है, जो जल को जड़ों में उपस्थित ज़ाइलम कोशिकाओं द्वारा खींचता है। वाष्पोत्सर्जन, जल के अवशोषण और जड़ से पत्तों तक जल और उसमें घुले हुए लवणों के उपरिमुखी गति में सहायक है। यह ताप के नियमन में भी सहायक है। जल के वहन में मूल दाब रात्रि के समय विशेष रूप से प्रभावी है। दिन के समय जब रंध्र खुले होते हैं और वाष्पों का उत्सर्जन होता है तब ज़ाइलम ही उसका संतुलन रखता है।
Question 17:
पादप में जल और खनिज लवण का वहन कैसे होता है?
Answer:
पादप शरीर के निर्माण के लिए आवश्यक जल और खनिज लवणों को अपने निकट विद्यमान मिट्टी से प्राप्त
करते हैं।
1. जल—हर प्राणी के लिए जल जीवन का आधार है। पौधों में जल ज़ाइलम ऊतकों के द्वारा अन्य भागों
में जाता है। जड़ों में धागे जैसी बारीक रचनाओं की बहुत बड़ी संख्या होती है। इन्हें मूलरोम कहते
हैं। ये मिट्टी में उपस्थित पानी से सीधे संबंधित होते हैं। मूलरोम में जीव द्रव्य की सांद्रता
मिट्टी में जल के घोल की अपेक्षा अधिक होती है। परासरण के कारण पानी मूलरोमों में चला जाता है
पर इससे मूलरोम के जीव द्रव्य की सांद्रता में कमी आ जाती है और वह अगली कोशिका में चला जाता
है। यह क्रम निरंतर चलता रहता है जिस कारण पानी ज़ाइलम वाहिकाओं में पहुँच जाता है। कुछ पौधों
में पानी 10 से 100 सेमी० प्रति मिनट की गति से ऊपर चढ़ जाता है।
2. खनिज—पेड़-पौधों को खनिजों की प्राप्ति अजैविक रूप में करनी होती है। नाइट्रेट, फॉस्फेट आदि
पानी में घुल जाते हैं और जड़ों के माध्यम से पौधों में प्रविष्ट हो जाते हैं। वे पानी के माध्यम
से सीधा जड़ों से संपर्क में रहते हैं। पानी और खनिज मिल कर ज़ाइलम ऊतक में पहुँच जाते हैं और
वहाँ से शेष भागों में चले जाते हैं। जल तथा अन्य खनिज-लवण ज़ाइलम के दो प्रकार के अवयवों
वाहिनिकाओं एवं वाहिकाओं से जड़ों से पत्तियों तक पहुँचाए जाते हैं। ये दोनों मृत तथा स्थूल
कोशिका भित्ति से युक्त होती हैं। वाहिनिकाएं लंबी, पतली, तुर्क सम कोशिकाएं हैं, जिनमें गर्त
होते हैं। जल इन्हीं में से होकर एक वाहिनिका से दूसरी वाहिनिका में जाता है। पादपों के लिए
वांछित खनिज, नाइट्रेट तथा फॉस्फेट अकार्बनिक लवणों के रूप में मूलरोम द्वारा घुलित अवस्था में
अवशोषित कर जड़ में पहुँचाए जाते हैं। यही जड़ें ज़ाइलम ऊतकों से उन्हें पत्तियों तक पहुंचाते
हैं। जल तथा अन्य खनिज-लवण ज़ाइलम के दो प्रकार के अवयवों वाहिनिकाओं एवं वाहिकाओं से जड़ों से
पत्तियों तक पहुँचाए जाते हैं। ये दोनों मृत तथा स्थूल कोशिका भित्ति से युक्त होती हैं।
वाहिनिकाएं लंबी, पतली, तुर्क सम कोशिकाएं हैं, जिनमें गर्त होते हैं। जल इन्हीं में से होकर एक
वाहिनिका से दूसरी वाहिनिका में जाता है। पादपों के लिए वांछित खनिज, नाइट्रेट तथा फॉस्फेट
अकार्बनिक लवणों के रूप में मूलरोम द्वारा घुलित अवस्था में अवशोषित कर जड़ में पहुँचाए जाते
हैं। यही जड़ें ज़ाइलम ऊतकों से उन्हें पत्तियों तक पहुंचाते हैं।
Question 18:
पादप में भोजन का स्थानांतरण कैसे होता है?
Answer:
पादपों की पत्तियाँ प्रकाश संश्लेषण क्रिया से अपना भोजन तैयार करती हैं और वह वहाँ से पादप के
अन्य भागों में भेजा जाता है। प्रकाश संश्लेषण के विलेय उत्पादों का वहन स्थानांतरण कहलाता है।
यह कार्य संवहन ऊतक के फ्लोएम नामक भाग के द्वारा किया जाता है। फ्लोएम इस कार्य के अतिरिक्त
अमीनो अम्ल तथा अन्य पदार्थों का परिवहन भी करता है। ये पदार्थ विशेष रूप से जड़ के भंडारण
अंगों, फलों, बीजों और वृद्धि वाले अंगों में ले जाए जाते हैं। भोजन तथा अन्य पदार्थों का
स्थानांतरण संलग्न साथी कोशिका की सहायता से चालनी नलिका में उपरिमुखी तथा अधोमुखी दोनों दिशाओं
में होता है।
फ्लोएम से स्थानांतरण का कार्य ज़ाइलम के विपरीत होता है। यह ऊर्जा के उपयोग से पूरा होता है।
सुक्रोज़ जैसे पदार्थ फ्लोएम ऊतक में ए टी पी से प्राप्त ऊर्जा से ही स्थानांतरित होते हैं। यह
दाब पदार्थों को फ्लोएम से उस ऊतक तक ले जाता है जहां दाब कम होता है। यह पादप की आवश्यकतानुसार
पदार्थों का स्थानांतरण कराता है। वसंत ऋतु में यही जड़ और तने के ऊतकों में भंडारित शर्करा का
स्थानांतरण कलिकाओं में कराता है जिसे वृद्धि के लिए ऊर्जा की आवश्यकता होती है।
Question 19:
वृक्काणु (नेफ्रॉन) की रचना तथा क्रिया विधि का वर्णन कीजिए।
Answer:
वृक्क (गुर्दे) में आधारी निस्पंदन एकक बहुत बारीक भित्ति वाली रुधिर कोशिकाओं का गुच्छ होता
है। वृक्क में प्रत्येक कोशिका गुच्छ एक नलिका के कप के आकार के सिरे के अंदर होता है। यह नलिका
छने हुए मूत्र को इकट्ठा करती है। हर वृक्क में ऐसे अनेक निस्पंदक एकक होते हैं जिन्हें
वृक्काणु (नेफ्रॉन) कहते हैं। ये आपस में निकटता से पैक रहते हैं। आरंभ में ग्लुकोस, अमीनो
अम्ल, लवण, जल आदि कुछ पदार्थ निस्पंद में रह जाते हैं पर जैसे-जैसे मूल इस में प्रवाहित होता
है इन पदार्थों का चयनित छनन हो जाता है वृक्काणु के डायलिसियस का थैला भी कहते हैं क्योंकि इस
की प्याले नुमा संरचना बाऊमैन संपुट में स्थिर कोशिका गुच्छ की दीवारों से छनता है। रक्त में
उपस्थित प्रोटीन के अणु बड़े होने के कारण छन नहीं पाते हैं। ग्लूकोज़ और लवण के अणु छोटे होने
के कारण छन जाते हैं।
Question 20:
उत्सर्जी उत्पाद से छुटकारा पाने के लिए पादप किन विधियों का उपयोग करते हैं?
Answer:
पादपों में उत्सर्जी उत्पाद हैं—कार्बन डाइऑक्साइड, ऑक्सीजन, जलवाष्पों की अधिकता, तरह-तरह के लवण, रेजि़न, टेनिन, लैटक्स आदि। पादपों में उत्सर्जन के लिए कोई विशेष अंग नहीं होते। उनमें अपशिष्ट पदार्थ रवों के रूप में इकट्ठे हो जाते हैं जो कि पादपों को कोई हानि नहीं पहुँचाते। पौधों के शरीर से छाल अलग होने पर तथा पत्तियों के गिरने से ये पदार्थ निकल जाते हैं। कार्बन डाइऑक्साइड श्वसन क्रिया का उत्सर्जी उत्पाद है जिस का प्रयोग प्रकाश संश्लेषण क्रिया में कर लिया जाता है। अतिरिक्त जलवाष्प वाष्पोत्सर्जन से बाहर निकाल दिया जाता है। ऑक्सीजन रंध्रों से वातावरण में छोड़ दी जाती है। अतिरिक्त लवण जल वाष्पों के माध्यम से उत्सर्जित कर दिए जाते हैं। कुछ उत्सर्जी पदार्थ फलों, फूलों और बीजों के द्वारा उत्सर्जित कर दिए जाते हैं। जलीय पादप उत्सर्जी पदार्थों को सीधा जल में ही उत्सर्जित कर देते हैं।
Question 21:
मूत्र बनने की मात्रा का नियमन किस प्रकार होता है?
Answer:
मूत्र बनने की मात्रा इस प्रकार नियंत्रित की जाती है कि जल की मात्रा का शरीर में संतुलन बना रहे। जल की बाहर निकलने वाली मात्रा इस आधार पर निर्भर करती है कि उसे कितना विलेय वर्ज्य पदार्थ उत्सर्जित करना है। अतिरिक्त जल का वृक्क में पुनरावशोषण कर लिया जाता है और उसका पुन: उपयोग हो जाता है।